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अंधेरों का कोई मुंतज़िर नहीं होता - Dr. N. R. Kaswan (Sahitya Arpan)

कवितानज़्म

अंधेरों का कोई मुंतज़िर नहीं होता

  • 33
  • 1 Min Read

रात के अंधेरों का कोई 'बशर' मुंतज़िर नहीं होता है
गोया दिनके उजालों में क्या-कुछ इधर नहीं होता है

© डॉ. एन. आर. कस्वाँ "बशर" 🍁

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