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कवितानज़्म
जलें चराग़ तो है रौशनी जो बुझ गए तो कुछ नहीं सफ़र-ए-हयात में बशर जो रुक गए तो कुछ नहीं मेयार-ओ-अना को न आंच कभी कोई आने पाए अड़े रहें खड़े रहें हकपर जो झुकगए तो कुछ नहीं © डॉ.एन.आर.कस्वाँ "बशर" 🍁