अतुकांत कविता
ये हवा न जाने तू किधर से आई ,तुझे किसने बनाया क्या है तेरी सच्चाई।
न तेरा रंग,रुप न ठिकाना,कभी भी तुझको किसी ने न जाना ।
गर्मी की शाम को जब तू आये, मन सभी के डगमगाकर इस संसार की सुंदरता को बढ़ाये।
कोयल कूके बोले मोरे ,सरिता का जल ले हिलोर ।
तेरा न बसेरा कहि फिर भी सबके मन को भायी।
ये हवा न जाने....…...…..........….................. ।
उडती हुई चिड़ियों का बसेरा, न जाने इसने कहा डाला बसेरा।
हरे भरे खेत जिसमें स्वर्ण सके बाली आयी,
अम्र का भी मौसम ता नीचे सुन्दर छाया।
कोयल की बोली और बच्चों की धुन,ये दोस्त जरा इसकी भी सुन।
जिधर चाहे उधर जाए ,न किसी से पूछे न कुछ फरमाये।
ये हवा.....….............….........…...…...…………….............…..........।
दुबली पतली कितनी तू फिर भी सभी को भये।
रुप तेरा एक और भी है, जिसने सबको डराया।
होती तू नाराज न देखें, कौन आगे तेरे आया।
ये रूप तेरा है भयानक जो आता है अचानक, बन जाती जब तू खुंखार कहते लोग आंधी है आयी।
ये हवा न जाने तू किधर से आयी...।
Dileep kumar