Or
Create Account l Forgot Password?
कवितानज़्म
गायब हुए खरीददार आजकल, सूना पड़ा है बाज़ार आज-कल! कलमकार सुख़ननिगार हो गए, सब बेकार ओ बेज़ार आजकल! कद्र दान मेहरबान है कहाँ कोई, सुनता नहीं अश्आर आज-कल! मंदी की मार झेल रहा है "बशर", सुख़नवरी का व्यापार आजकल! © dr. n. r. kaswan "bashar" Surrey/02/02/2024