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सूना पड़ा बाज़ार - Dr. N. R. Kaswan (Sahitya Arpan)

कवितानज़्म

सूना पड़ा बाज़ार

  • 262
  • 2 Min Read

गायब हुए खरीददार आजकल,
सूना पड़ा है बाज़ार आज-कल!

कलमकार सुख़ननिगार हो गए,
सब बेकार ओ बेज़ार आजकल!

कद्र दान मेहरबान है कहाँ कोई,
सुनता नहीं अश्आर आज-कल!

मंदी की मार झेल रहा है "बशर",
सुख़नवरी का व्यापार आजकल!

© dr. n. r. kaswan "bashar"
Surrey/02/02/2024

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