Help Videos
About Us
Terms and Condition
Privacy Policy
सूना पड़ा बाज़ार - Dr. N. R. Kaswan (Sahitya Arpan)

कवितानज़्म

सूना पड़ा बाज़ार

  • 266
  • 2 Min Read

गायब हुए खरीददार आजकल,
सूना पड़ा है बाज़ार आज-कल!

कलमकार सुख़ननिगार हो गए,
सब बेकार ओ बेज़ार आजकल!

कद्र दान मेहरबान है कहाँ कोई,
सुनता नहीं अश्आर आज-कल!

मंदी की मार झेल रहा है "बशर",
सुख़नवरी का व्यापार आजकल!

© dr. n. r. kaswan "bashar"
Surrey/02/02/2024

logo.jpeg
user-image
चालाकचतुर बावलागेला आदमी
1663984935016_1738474951.jpg
वक़्त बुरा लगना अब शुरू हो गया
1663935559293_1741149820.jpg
मुझ से मुझ तक का फासला ना मुझसे तय हुआ
20220906_194217_1731986379.jpg
प्रपोजल
image-20150525-32548-gh8cjz_1599421114.jpg
वो चांद आज आना
IMG-20190417-WA0013jpg.0_1604581102.jpg