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ज़िन्दगी नए नए रंग बदलती है - Dr. N. R. Kaswan (Sahitya Arpan)

कवितानज़्म

ज़िन्दगी नए नए रंग बदलती है

  • 30
  • 2 Min Read

मौसम-ए-बहार फितरतें बदलती है,
अपनी जिंदगी भी अजनबी लगती है!

रोजो-शब का मुसलसल अनाजाना,
हयात भी किसी मशीन-सी चलती है!

धूपछांव का सा है सब खेल तमासा,
दिन ढलतेही इक परछाई निकलती है!

बिखरती है बिफरती है निखरती है,
ज़िन्दगी रोज़ नए -नए रंग बदलती है!

© dr. n. r. kaswan "bashar"
Surrey/02/02/2024

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