कवितानज़्म
आबरू क्या है हुस्न की ताब के बग़ैर
क़ीमत क्या है हीरे मोती की आब के बग़ैर !
मुहब्बत होतीहै हर किसीको किसीसे
इश्क क्या है मग़र आशिक बेताब के बग़ैर !
सोना बहुत जरूरी है हयात में अक़्सर
बे-सबब नींद क्या है किसी ख़्वाब के बग़ैर !
आनाजाना ही नहीं काफी मयकदे मे
हाथों में पैमाना भी क्या है शराब के बग़ैर !
टिमटिमाते हैं यूंतो सितारे हजारों मग़र
सूना है फ़लक बशर इक महताब के बग़ैर!
© ✒️ डॉ.एन.आर.कस्वाँ "बशर" 🍁