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कवितानज़्म
बस इक यहीतो काम जरा-सा किया हमारी ही हसरतों ने हमको रुआँसा किया, भीड़ से होकर अलग मकाम बना नहीं नाहक खुदही हमने खुदका तमाशा किया! © ✒️ डॉ.एन.आर.कस्वाँ "बशर" 🍁