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बुर्के पर नक़ाब लगाकर आया - Dr. N. R. Kaswan (Sahitya Arpan)

कवितानज़्म

बुर्के पर नक़ाब लगाकर आया

  • 22
  • 2 Min Read

ख़िज़ाब लगाकर आया कभी हिजाब लगाकर आया
चेहरेपे चेहरे बदल बदलकर बेहिसाब लगाकर आया

हैरतमें पड़ा आईना कि रखकर गैरत ताकपर अपनी
बेगैरत होकरके बन्दा बुर्के पर नक़ाब लगाकर आया

©✒️डॉ.एन.आर.कस्वाँ "बशर"

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