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कवितानज़्म
हासिल-ए-ऐश-ओ-इशरत को कमाल न समझ है बड़ी दो पल खुशी बड़े अपने मलाल न समझ मुसलसल बहता हुआ आब -ए -दरिया है वक़्त वक़्त को मग़र 'बशर' आतेजाते साल न समझ © dr. n. r. kaswan "bashar"🍁