कवितानज़्म
किस का रस्ता देखता है कौन आएगा
राहे-हयात देखते हुए क्या मर जाएगा
माना कि कुछ नहीं अच्छा वक़्त तिरा
बुरा है वक़्त जरा मग़र गुज़र जाएगा
मंज़िल ए मक़्सूद है दो कदम पर तेरी
लौट कर इस मकाम से किधर जाएगा
घर से निकलने से पहले ही सोच लेना
कि इस बस्ती से कौन से शहर जाएगा
रात के सफ़र से दिन के सफ़र जाएगा
नींद खुल जाएगी ख़्वाब बिखर जाएगा
© dr. n. r. kaswan "bashar"