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ताबे'दार बे-शु'ऊर निकला - Dr. N. R. Kaswan (Sahitya Arpan)

कवितानज़्म

ताबे'दार बे-शु'ऊर निकला

  • 39
  • 1 Min Read

मामूली ज़ख़्म समझे थे जिस को नासूर निकला
सजा किसी को मिली, किसी का कसूर निकला

रंग- ए-तहज़ीब-ओ-तमद्दुन के मुरीद हुए हम भी
हरसू ताबे'दार हरकोई 'बशर' बे-शु'ऊर निकला

©️"बशर"

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