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कवितानज़्म
मामूली ज़ख़्म समझे थे जिस को नासूर निकला सजा किसी को मिली, किसी का कसूर निकला रंग- ए-तहज़ीब-ओ-तमद्दुन के मुरीद हुए हम भी हरसू ताबे'दार हरकोई 'बशर' बे-शु'ऊर निकला ©️"बशर"