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चूल्हे की रोटी - Rajjansaral (Sahitya Arpan)

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चूल्हे की रोटी

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  • 6 Min Read

साहित्य अर्पण
#विधा मुक्त
#दिनांक ०१/०२/२०२४
#स्वरचित मौलिक रचना

" चूल्हे की रोटी "

क्या जमाना था वो जब चूल्हे में रोटी बनती थी ।
साथ खाते थे सभी मिल सबसे अच्छी बनती थी ।।

दादी, बब्बा, चाचा , चाची से सजा परिवार' था ,
रहते थे हम सब मगर बब्बा की उनमें चलती थी ।

साथ मिलकर जब सभी, खेतों मे करते' काम थे ।
हम सभी भाई बहन मे खूब अच्छी जमती थी ।।

क्या जमाना था ........

होगया क्या आज हमको, हम अकेले हैं' सभी ।
रस्ते होते हैं बड़ा धन बात मेरे मन की थी ।।

क्या जमाना था .......

भौजी के हांथों की रोटी, डोसे से भी बढ़ के थी ,
भाजी भी रहिला की उनकी छोले से भी बढ़ के थी ।

बंद मुट्ठी देखके दुश्वारियां भग जाती थीं ।
क्या ज़माना था वो जब चूल्हे में रोटी बनती थी ।।

आ गई जब गैस हम, सब ऐश हैं करने लगे ,
साथ रहने में सभी भाई , तो अब उरने लगे ।

हो गए होशियार सब हम धन कमाने लग गए ।
मां पिता को छोड़कर बच्चे पढ़ाने भग गए ।।

मर गए मां बाप हमको होश ना आया अभी।
जोड़ ली दौलत तो हमने चैन ना वाया कभी ।

अब सुधर जा लौट आ घर , मिट्टी मे मिल जायगा ।
लाल डाउन हो गया फिर, अब कहाँ तू जायेगा ।।

क्या जमाना था वो जब चूल्हे में रोटी बनती थी ।
साथ खाते थे सभी मिल सबसे अच्छी बनती थी ।।

शब्द रचना पं० रज्जन सरल
सतना म०प्र०

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Rajjansaral

Rajjansaral 7 months ago

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