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खुदा बचाए रुस्वाई के अज़ाब से - Dr. N. R. Kaswan (Sahitya Arpan)

कवितानज़्म

खुदा बचाए रुस्वाई के अज़ाब से

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चलता है येह जमाना अपने ही हिसाब से,
ना कि लिखी किसी तहरीर-ए-किताब से!

येह ख़्याली पुलाव खिलाओगे कब तलक,
भूख कहाँ मिट पाई पकवानों के ख़्वाब से!

रूखी - सूखी खाकर बंदेया ठण्डा पानी पी,
रखिए परहेज़ जमाने के ख़्याली कबाब से!

भलेही लाख छुपाकर रखिए नीम पोशीदा,
चेहरा नज़र आजाता है छनकर हिज़ाब से!

मिलता नहीं है हल किसी गलत सवाल का,
न मेरे जवाब से न किसी और के जवाब से!

अश्क-बारी आहो-फुगाँ हरवक़्त की दुहाई,
खुदा बचाए उल्फत में रुस्वाई के अज़ाब से!

© dr. n. r. kaswan "bashar"🍁

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