कवितानज़्म
*मुश्क़िलात से भरा होता है सफ़र*
दुखती रगपर रखकर हाथ अपने कहते हो कैसे हो
तुम ही से तो थी उम्मीद "बशर" लोग चाहे जैसे हों
बहती हुई जल धारा को सागर में मिल ही जाना है
खड़े रहना बहते दरिया का हो तो मुमकिन कैसे हो
मुश्क़िलात से भरा होता है सफ़र सभी का यहाँ पर
चाहता कोईनहीं हालाते-हयात किसीके ऐसेवैसे हो
ख़ुशहाली में अमीरकी और ग़ुरबत में हर ग़रीब की
हो ही जाती है सबकी गुजर-बसर चाहे जैसेतैसे हो
© dr. n. r. Kaswan "bashar"