Help Videos
About Us
Terms and Condition
Privacy Policy
कविता - Rinku Bumra (Sahitya Arpan)

कविताअतुकांत कविता

कविता

  • 87
  • 4 Min Read

उपज कवि के मन से
बन जाऊं कविता मैं
किसी का दुःख
किसी का सुख समझाऊं मैं
कभी बनकर प्रेरणा
अंतर्मन में बस जाऊं मैं

जब सुरीले कंठ से होकर
बाहर को आऊं मैं
तालियां सुनकर लोगो की
खुद पर इतराऊं मैं

किसी का राज खोल दूं
किसी का जीवन तोल दूं
कोई समझे मुझे गहनता से
उसके जुबां पे वाह- वाह छोड़ दूं मैं

कहीं वादों का
कहीं इरादों का
कहीं यादों का
प्रेम रूप बतलाऊं मैं

भ्रष्ट हो या हत्यारा
दुश्मन हो या प्यारा
बंगला हो या झोपड़ी
ज्ञानी हो या अज्ञानी
मैं सबकी बातें करती हूं

इस कलम से मेरा रिश्ता है
इसे छोड़ ना पाऊं मैं
उपज कवि के मन से
बन जाऊं कविता मैं
‌स्वरचित
रिंकू बुमरा
महेंद्रगढ़ हरियाणा

logo.jpeg
user-image
वो चांद आज आना
IMG-20190417-WA0013jpg.0_1604581102.jpg
तन्हाई
logo.jpeg
प्रपोजल
image-20150525-32548-gh8cjz_1599421114.jpg
माँ
IMG_20201102_190343_1604679424.jpg