कविताअतुकांत कविता
उपज कवि के मन से
बन जाऊं कविता मैं
किसी का दुःख
किसी का सुख समझाऊं मैं
कभी बनकर प्रेरणा
अंतर्मन में बस जाऊं मैं
जब सुरीले कंठ से होकर
बाहर को आऊं मैं
तालियां सुनकर लोगो की
खुद पर इतराऊं मैं
किसी का राज खोल दूं
किसी का जीवन तोल दूं
कोई समझे मुझे गहनता से
उसके जुबां पे वाह- वाह छोड़ दूं मैं
कहीं वादों का
कहीं इरादों का
कहीं यादों का
प्रेम रूप बतलाऊं मैं
भ्रष्ट हो या हत्यारा
दुश्मन हो या प्यारा
बंगला हो या झोपड़ी
ज्ञानी हो या अज्ञानी
मैं सबकी बातें करती हूं
इस कलम से मेरा रिश्ता है
इसे छोड़ ना पाऊं मैं
उपज कवि के मन से
बन जाऊं कविता मैं
स्वरचित
रिंकू बुमरा
महेंद्रगढ़ हरियाणा