कवितानज़्म
गुल खिल कर महके फिर बिखर गए
फ़लक पर बादल छाए फिर बिखर गए!
दो दिन के साथमें सदियाँ गुजारी हमने
वस्ल-ए-यार के जमाने जाने किधर गए!
दिल में दफ़न हुईं यादों को मत कुरेदो
जज़्ब सीनेमें दर्द रहगया ज़ख़्म भर गए!
बड़े शौक से सजाया आशियाना हम ने
पहली बारिशमें मग़र बशर रंग उतर गए!
हम भी चले आए परदेश बदल कर भेष
मतपूछ मकाँ किधरगया मकीं किधर गए!
© dr. n. r. kaswan "bashar"🍁