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कवितानज़्म
मुनव्वर नहीं मिलता गुज़रगाह नहीं मिलता फिर से वही रहगुज़र नहीं मिलता लम्बाहै सफ़र उम्रभर केलिए बशर हमसफ़र नहीं मिलता बताये तजुर्बाते-दास्ताने-हयात वो सुख़नवर नहीं मिलता चार-सू पसरे हैं स्याह अंधियारे कोई मुनव्वर नहीं मिलता ©️ dr. n. r. kaswan "bashar"