कविताअन्य
मैं पैसा हूं,मैं पैसा हूं,मैं पैसा हूं,सबको तरसाता हूं।
टूट परे है रिस्ते पे,पैसों की लम्बी कतारें में।
मैं पैसा हूं,मैं पैसा हूं,मैं पैसा हूं,सबको तरसाता हूं।
कुद पड़े हैं पैसों की गहराई में।यही एक सच्चाई हैं।
मैं पैसा हूं,मैं पैसा हूं,मैं पैसा हूं,सबको तरसाता हूं।
डूब चुके हैं पैसों में,भुल चुके हैं रिस्तेदारों को।
मैं पैसा हूं,मैं पैसा हूं,मैं पैसा हूं,सबको तरसाता हूं।
अंधकार यह है दुनिया,पैसों और सपनों की भूख में।
मैं पैसा हूं,मैं पैसा हूं,मैं पैसा हूं,सबको तरसाता हूं।
भूख लगी हैं,इस पेट को,पैसों की दुनिया हैं। मैं पैसा हूं,मैं पैसा हूं,मैं पैसा हूं,सबको तरसाता हूं।
मैं पैसा हूं,मैं पैसा हूं,मैं पैसा हूं,सबको तरसाता हूं।
टूट परे है रिस्ते पे,पैसों की लम्बी कतारें में।
मैं पैसा हूं,मैं पैसा हूं,मैं पैसा हूं,सबको तरसाता हूं।
Plz Acha lage to share kare taki mujhe kafi utsah hoga,kuch kami hoga to batayeiga sudhar karne ka koshish karunga
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