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कवितानज़्म
बर्फ़पर घर बसाने लगे हैं ठंडे पड़े हुए वीरान इलाक़े गरमाने लगे हैं भीड़ वाले मुल्क़ से मुजाहिर आने लगे है निर्जन को आबाद करने में जमाने लगे हैं हौसले सलामत बर्फ़पर घर बसाने लगे हैं © dr. n. r. kaswan "bashar"