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स्वप्नपास संस्मरण - Rajjansaral (Sahitya Arpan)

कवितानज़्मभजनगजलदोहाछंदगीत

स्वप्नपास संस्मरण

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साहित्य अर्पण
#दिनांक १०/०१/२०२४
#विषय : खुली आंखों से भी सपने देखे जा सकते हैं
यथार्थ संस्मरण

चलिए एक यात्रा पर चलते है ।
भगवान श्री राम की अयोध्या की यात्रा । यद्यपि यह यात्रा मैंने केवल वाल्माकि जी की रामायण में थी की है। और अपनी 'मानस-सरल' मे इसकी सोभा का वर्णन भी किया है अपनी बुद्धि प्रवरता के हिसाब से ।

गरुण व कागमुसुिण्डि जी के संवाद में कागमुसुण्डि जी ने अयोध्या की यात्रा कराई है । जिसे गरुण जी के साथ मैंने भी की है।

परन्तु यह नहीं कह सकता कि वास्तविक थी या काल्पनिक ।
क्या कोई व्यक्ति शरीर से किसी तीर्थ में जाकर उसका वास्तविक ज्ञानन्द व पुष्य पा सकता है, जबकि उसका मन कहीं घर में या अन्यत्र रह गया हो ?
कुछ समय पूर्व की बात है जब मैं अपनी कृति मानस सरल की रचना कर रहा था । और खुली आंखों से सपने देखा करता , तभी एक रात मैं स्वप्न में अयोध्या की यात्रा पर निकला । मेरा परिवार भी मेरे साथ ही इस यात्रा में शामिल था ।
सभी लोग बहुत खुश हैं जैसी सोभा का वर्णन रामायण में सुन रखा था वैसी छवि मन में वसाये हम बस पर सवार होकर जा रहे ।

अब तो पहुंचने ही वाले हैं और अचानक मेरी सुपुत्री दिव्या ने कहा- देखो पिताजी हम आ गए, और हमने देखा कि तीन गुम्बचों वाला विशाल द्वार कुछ लाल पत्थरों का बना हुआ किले नुमा प्रमुख दरवाजा ।

हम सब नीचे उतरे और प्रशन्नता पूर्वक चल दिए । आँगे जाने पर स्वर्ग जैसा अनुभव हुआ । एवं वहा पर यज्ञशालाएं देखी । सरयू मैया के दर्शन किए। साधु, संतों का समागम , करोड़ों की भीड़ जैसे कि प्रयाग राज के मेले देखी थी।

वहां पर हमारे गांव के स्व० श्री रोहणी-प्रसाद उरमलिया जी मिले मैने उनको प्रणाम किया , देखा कि यज्ञ के आयोजन में उनका पूरा परिवार शामिल है । जबकि असल में वे दो वर्ष पूर्व ही दुनियां छोड़ कर जा चुके हैं ।आंगे हमने देवालयों मंदिरों के दर्शन करते हुए अयोध्या की शोभा का लुत्फ उठाया ।

हालाँ कि मैं पहले कभी अयोध्या नहीं गया, फिर भी मैं इसे हरि दर्शन मानकर खुश हूं और खुद को गोस्वामी जी जितना भाग्यशाली मानता हूं ।

लेखक : पंडित रज्जन सरल
सतना म०प्र०

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