कवितानज़्म
राब्तों के उस भ्रम को भी तोड़ दिया हमने
रिश्तों को हसीं मोड़ देकर छोड़ दिया हमने
जिन के बुलाने की हसरत पाले थे मुद्दत से
उन का हर बुलावा वापस मोड़ दिया हमने
किस क़दर अजीज थे बता नहीं सकते हम
क़रीब को अपना समझना छोड़ दिया हमने
अपनी दुनिया उनके हवाले करदेते शौक से
खुदको ही दुनियाके हवाले छोड़ दिया हमने
क़रार था, इकरार था, मुहब्बत थी प्यार था
कर दरकिनार कच्चा धागा तोड़ दिया हमने
© dr.n.r.kaswan "bashar"