कवितानज़्म
रोज-ओ-शब आज-कल सर्द हो गए
मिज़ाज मौसम के जरा बेदर्द हो गए
रक़ीबों की बस्ती में राब्ते गए बस्ते में
कम-ज़र्फ़ "बशर" सब हमदर्द हो गए
कारवां अहबाब का निकल गया और
हमसफ़र हमारे गुबार-ओ-गर्द हो गए
लिहाफ़ में लिपटे हुए उनको यादकिए
संगदिल हमारे जो दिल का दर्द होगए
ठंडी हवाचली काया के बस अब गली
ठिठुरकर गर्म अहसास भी सर्द होगए
© dr.n.r.kaswan "bashar"
Surrey/09/01/2024