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गर्म अहसास भी सर्द हो गए - Dr. N. R. Kaswan (Sahitya Arpan)

कवितानज़्म

गर्म अहसास भी सर्द हो गए

  • 38
  • 2 Min Read

रोज-ओ-शब आज-कल सर्द हो गए
मिज़ाज मौसम के जरा बेदर्द हो गए

रक़ीबों की बस्ती में राब्ते गए बस्ते में
कम-ज़र्फ़ "बशर" सब हमदर्द हो गए

कारवां अहबाब का निकल गया और
हमसफ़र हमारे गुबार-ओ-गर्द हो गए

लिहाफ़ में लिपटे हुए उनको यादकिए
संगदिल हमारे जो दिल का दर्द होगए

ठंडी हवाचली काया के बस अब गली
ठिठुरकर गर्म अहसास भी सर्द होगए

© dr.n.r.kaswan "bashar"
Surrey/09/01/2024

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