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कवितानज़्म
येघर, घर ना रहा सहन वीरान हो गया मकीं मकान का जबसे शैतान हो गया आदमियत इन्सानियत तहज़ीब अदब इख़्लास भूल कर बशर हैवान हो गया © dr. n. r. kaswan "bashar"