कवितानज़्म
फ़रेब भरे हैं प्यार में
कुछनहीं अधिकारमें!
नुकसान में है आदमी
जीवन के व्यापार में!
रंज-ओ-ग़म बिकते हैं
मसर्रतों के बाज़ार में!
हरकोई मुंतज़िर दिखे
खुशियोंके इंतज़ार में!
नफ़रतें ही पल रही है
हरसू बेसबब प्यार में!
इख़्लास रहा ही नहीं
बशर के इख़्तियार में!
© dr. n. r. kaswan "bashar"