कवितानज़्म
आंख से आंख मिलाकर बात कर
आंखे चुराने की ज़रूरत क्या है!
ख़यालात जिन से मिलते ही नहीं
हाथ मिलाने की ज़रूरत क्या है!
रक़ीबों की रक़ाबत से हो वाकिफ़
दोस्त बनाने की ज़रूरत क्या है!
नस-नस में भरा है नशा ईमान का
मैकदे जाने की ज़रूरत क्या है!
सांच को नहीं है जब आंच 'बशर'
शीशा दिखानेकी ज़रूरत क्याहै!
एकसाधे सबसधे सबसाधे सब जा
फिर ज़माने की ज़रूरत क्या है!
© "बशर"