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कवितानज़्म
काटे नहीं कटती रात आंखों में जिनके नींद का नाम नहीं होता गुज़रने का नाम नहीं लेता दिन हाथों में जिनके काम नहीं होता क़ुव्वत लड़ानी पड़ती है लोगोंके दिलों में जगह बनाना पड़ती है फ़क़त अखबारों में बशर छप जने से किसी का नाम नहीं होता © dr. n. r. kaswan "bashar"