कवितानज़्म
दलित और शोषित के हालात पर लिख
हजम हो नहीं रही है उस बात पर लिख!
फासला सदियों की खाई का गहरा गया
ग़रीबी-अमीरी बीच मुलाक़ात पर लिख!
गुजरते हैं पल - पल ग़ुरबत में ग़रीब के
कैसे-कैसे हालात में दिन-रात पर लिख!
मुफ़लिस के मंसूबों से पानी भरता कैसे
बिखरतेहैं कैसे उसके जज़्बात पर लिख!
अमीरों को तो सभी ने लिखा है बहोत
किसान - मजदूर के ख़्यालात पर लिख!
सर्दी-गर्मी आंधी-तूफां बरसात पर लिख
सीमापे जवानके जज़्बेजज़्बात पर लिख!
इकतरफ़ा बहुतलिखा बहुतरहा अनकहा
हरसूरत हरसू हरशयके हालात पर लिख!
© डॉ. एन.आर. कस्वाँ "बशर"