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कवितानज़्म
नये साल की खुशी न पुराने का ग़म ग़ुरबत में थे और गुरबत में हैं हम मुफ़लिसी में हुई दफ़्न मय्यत हमारी तुरबत में थे और तुरबत में हैं हम © dr. n. kaswan "bashar" Surrey/03/01/2024