कवितानज़्म
बीते बरस की बातें पुरानी कहानी हुई,
ज़ख़्मों की जननी मरहम की नानी हुई!
बीती ताही बिसार दे कहनी जुबानी हुई,
रीत जगत की है ये जानी -पहचानी हुई!
हुक्मरान गए उन की सब हुक्मरानी गई,
हरचीज़ लगे पराई सब आनी-जानी हुई!
जान भी अपनी नहीं हर-शय बेगानी हुई
सांसे भी उधार की पराई जिन्दगानी हुई!
दुनिया-ए-तसव्वुर के रैन बसेरे में आकर
किस बातकी 'बशर' तुझे बदगुमानी हुई!
© dr. n. r. kaswan "bashar"