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कवितानज़्म
साल दर साल बदले मु'आशरे के न हाल बदले अबके बरस गर बदले येह साल बाकमाल बदले ग़रीब की ग़ुरबत बदले बेहाल हैं उनके हाल बदले जीनेका राग बाग बदले जीवन के सुर -ताल बदले मुफ़लिस मुस्कुराने लगे के साल ये बेमिसाल बदले ©dr.n.r.kaswan "bashar" 01/01/2024