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दरबदर होकर घरकी बहुत याद आती है - Dr. N. R. Kaswan (Sahitya Arpan)

कवितानज़्म

दरबदर होकर घरकी बहुत याद आती है

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गली-कूचे सहन शजर दरीचे दिवारो-दर की बहुत याद आती है
बिखरने के बाद बशर दरबदर होकर घर की बहुत याद आती है
© Dr.N.R.Kaswan "bashar" Surrey/6/1/24

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