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कवितानज़्म
मौसमे -सर्द है मग़र बशर दिलों में गर्माहट बहुत है मेहनत-मशक़्क़त कुछ ज्यादा है पर राहत बहुत है मानाके बस्तियों के दरमियां यहां मसाफ़त बहुत है लोगोंमें मग़र मेहमाननवाज़ी और रफ़ाक़त बहुत है © डॉ.एन.आर.कस्वाँ "बशर" सरी/०६/०१/२०२४