कवितानज़्म
शराब पीकर न ख़्वाब देखा कर,
साफ नज़र से न ख़राब देखाकर!
तिश्नगी अपनी संभाल कर रख,
हो कर बेताब न सराब देखा कर!
धूप का दरिया बहता है यहाँ पर,
तपते सहरा में न आब देखा कर!
हुदूदे नज़र आए लख़्त-ए-जिगर,
इस क़दर न बे-हिसाब देखा कर!
© dr. n. r. kaswan "bashar"
Surrey/04/01/2024