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किसी और के कब दीवाने हो गए - Dr. N. R. Kaswan (Sahitya Arpan)

कवितानज़्म

किसी और के कब दीवाने हो गए

  • 37
  • 3 Min Read

ख़ुलूस -ओ -क़रार के मौसम गुज़रे ज़माने हो गए,
अहबाब दिल के क़रीब होते थे वोह बेगाने हो गए!

हिज्र फुरक़त फ़िराक़ जुदाई फासले इसक़दर बढे,
वस्ल-ओ-मुलाक़ात के ख़्वाब सब फ़साने हो गए!

नये मकान में साज-ओ-सामान सब नया आ गया,
घर की तस्वीर के चेहरे तमाम अब पुराने हो गए!

शजर सूना होनेलगा परिंदों के बच्चे सयाने हो गए,
सबके अपने अलग-अलग 'बशर' ठिकाने हो गए!

हम को मिली ख़बर तब तक किस्से पुराने हो गए,
हमारे थे दीवाने किसी औरके कब दीवाने हो गए!

© डॉ.एन.आर.कस्वाँ "बशर"

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