कविताअन्य
शीर्षक:नवविहान का स्वागत है
नवविहान का स्वागत है,
स्वागत है,स्वागत है,
उम्मीदें तुमसे है अपनी,
नया यहाँ कर जाओगे,
बीते बरस की बुनियादों पर,
बिल्डिंग नई बनाओगे,
कल भी सूरज निकला था,
कल भी सूरज निकलेगा,
पर कल के सूरज से तुम,
कुछ ऊर्जा नई दिलाओगे,
भले चलेंगे यहाँ थपेड़े,
नफरत के तूफानों के,
भले बढ़ रहे होंगे कद,
प्रतिपल जग में शैतानों के,
पर आशाएं हम पाले हैं,
तुम तनिक नहीं घबराओगे,
तकनीकी दुनिया ने मानवता,
पर घेरा डाला है,
और विषैले नागों को,
बाँहों में अपने पाला है,
चाह रहे प्रतिपल वो डँसना,
मानव की मानवता को,
बचा सकें जो पक्षीराज,
तुम लिये गरुड़ वो आओगे,
उम्मीदें तुमसे हैं अपनी,
नया यहाँ कर जाओगे,
समय के चलते परिभाषाएं,
भी कुछ बदली लगती हैं,
जो नहीं प्रवृत्ति में रहे कभी,
आयाम वो भी अब गढ़ती हैं,
चिंतित है संसार समूचा,
कल कैसा होने वाला,
उसकी उस चिन्ता का हल,
बनकर कल तुम आओगे,
उम्मीदें तुमसे हैं अपनी,
नया यहाँ कर जाओगे,
नवविहान नवदीप जलाओ,
जग करता ये स्वागत है,
इंतजार तेरा है सबको,
आओ, आओ स्वागत है,
नवविहान का स्वागत है,
स्वागत है,स्वागत है।
अमलेन्दु शुक्ल
सिद्धार्थनगर उ०प्र०