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कवितानज़्म
न रोज -ओ -शब बदलेंगे न येह शाम -ओ -सहर बदलेगी साल दर साल बदलेंगे, न इन्सान बदलेगा न दहर बदलेगी *दहर = दुनिया © डॉ. एन. आर. कस्वाँ "बशर" ३० दिसंम्बर २०२३, सरी