कवितानज़्म
ये क्या किया के ले गया सनम कोई
सीने से दिल हमारा निकालकर
धड़कता है कैसे हम भी तो देखें दिल
उसका अपने सीने में डालकर
हर किसीके वास्ते ऐ नाशाद दिल मेरे
यूंही न अपना हाल बेहाल कर
मसर्रतें भी होंगी मयस्सर हर हाल में
उम्मीदरख दिलसे न मलाल कर
राब्तोंकी जमीनपर नई मिट्टी डालकर
नया बशर और कोई कमाल कर
उजड़े हुए चमन को फिर गुलज़ार कर
मौसमे-बहार को फिर बहाल कर
© डॉ.एन.आर.कस्वाँ "बशर"
सरी, कनाडा