कवितानज़्म
*जख़्मसे बातकरे जख़्म*
कुछ भरे कुछ हरे जख़्म
दवा शिफ़ा से परे जख़्म
वक़्तकी मर्हम ने अक़्सर
होलेहोले कुछ भरे जख़्म
कुछजिंदा कुछ मरेजख़्म
परेशान सब करे जख़्म
तू न कुरेद येह मेरे जख़्म
ज़ख़्मों का ये सिलसिला
जख़्ममें जख़्मकरे जख़्म
हो मुनासिब किसी तरह
जख़्म से बात करे जख़्म
मैं समझ सकूं तेरे जख़्म
तू समझ सके मेरे जख़्म
© "बशर"