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कवितानज़्म
अहसान मानिए हमारी फुरक़त और फ़ासलों का जनाब कि छुपाए बैठे हैं तुम्हारी औक़ात और बेमुरव्वत ख़्वाब ©️ डॉ.एन.आर. कस्वाँ "बशर"/१५/१२/२०२३