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कवितानज़्म
*हम हुए वैसा ग़रीब न हुआ* साथ रह कर भी कभी क़रीब न हुआ दिल में तो आया मग़र नसीब न हुआ दिल की दौलत लुटाकर बशर अपनी हम हुए वैसा जमाने में ग़रीब न हुआ ©️ डॉ.एन.आर. कस्वाँ "बशर" १४/१२२०२३