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वचन या एक मात्र शब्द ? - Priyanka Dheeman (Sahitya Arpan)

लेखअन्यसमीक्षा

वचन या एक मात्र शब्द ?

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इतिहास गवाह है कि रघुकूल रीत सदा चली आई , प्राण जाए पर वचन ना जाये ।

किंतु आज की युवा पीढ़ी के लिए वचन मानों एक शब्द के बराबर हो चला है । क्या ये वचन सबकी सोच से ऊपर जा है ? या सबकी सोच बदल रही है ।

कोई वचन देकर प्रेम की सीमा का उल्लघण करता है तो कोई घंटों इंतज़ार करवाता है ।

लेकिन कब खत्म इन झूठी वचनों की झूठी बुनियादें ?

कहानी शुरु होती है रघुवंश के कुल से । जहाँ वचन पत्थर की लकीर है ।

भरत - '' भैया अगर आप 14 साल के वनवास के बाद भी नहीं लौटे तो मैं अग्नि प्रस्थान कर लूंगा । ''

भरी सभा में कैकायी पुत्र भरत ने राम जी से को ये वचन दे दिया । और सभी शब्दहीन हो गये । किसी के पास कहने को कुछ नहीं बचा ।

दशरथ नंदन राम - '' नहीं भैया । हम भी वचन देते हैं कि हम 14 वर्ष का वनवास पूर्णत्या सम्पन्न कर जरूर लौटेंगे । ''

राम जी के ये शब्द ही जैसे सभी के हृदयों में समा गये थे । दोनों भाइयों का ये भारत मिलाप बड़ा ही भावुक रहा । लेकिन वचन में बंधे दोनों भाई अपनी अपनी जिम्मेदारियों और अपने वचनों से बंधे थे ।

भरत को लौटना पड़ा और राम जी को वन वन भटकने को मिला । सीता हरण से लेकर रावण दहन तक एक छण ऐसा नहीं गुजरा जब बड़े भाई ने छोटे भाई को और छोटे भाई ने बड़े भाई को ना याद किया हो ।

ये तो था भाई भाई का प्रेम । जब 14 पूर्ण होने के बाद भी चिता पर मशाल हाथ में पकड़े बैठे थे भरत । सिर्फ अपने बड़े भाई के आगमन की प्रतीक्षा ने नैनों मैं अश्रु भरे थे ।

तब एक नाम गूंजा जिसने भरत को अग्नि प्रस्थान से रोक दिया । राम संग माता सीता और भैया लक्ष्मण जो लौट आये थे ।

आखिर कब होगा आज के युवाओं में ऐसा भाईचारा ? आखिर कब वचन को फिर शब्द ना मान कर पत्थर की लकीर माना जाने लगेगा ।

.......Priyanka Dheeman

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