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कवितानज़्म
ऐतिबार अपने रहबर पर रख अनजान है रहगुज़र अभी न देख मुसाफ़िर पा के आबले है इब्तिदा-ए-सफ़र अभी कटेगा नहीं रास्ता मील के इन पत्थरों को गिनने से बशर चलाचल मंजिले मक़्सूद की तरफ़ के दूरहै तेरा घर अभी © डॉ. एन. आर. कस्वाँ "बशर" २०/१२२०२३