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मतपूछ हमसे कैसे हमने हयात गुजारी हो - Dr. N. R. Kaswan (Sahitya Arpan)

कवितानज़्म

मतपूछ हमसे कैसे हमने हयात गुजारी हो

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मत पूछ हम से कि कैसे हम ने सफ़र-ए-हयात गुजारी
हो गई सांझ लुटेरों की बस्ती में वहीं हमने रात गुजारी

जो गुजारी न जा सकी बशर हमने वो हयात गुजारी है
मुफलिसी में दिन गुज़रा मुश्क़िल में सारीरात गुजारी है

@"बशर"

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तन्हा हैं 'बशर' हम अकेले
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ये ज़िन्दगी के रेले
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यादाश्त भी तो जाती नहीं हमारी
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प्रपोजल
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वो चांद आज आना
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