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कवितानज़्म
मत पूछ हम से कि कैसे हम ने सफ़र-ए-हयात गुजारी हो गई सांझ लुटेरों की बस्ती में वहीं हमने रात गुजारी जो गुजारी न जा सकी बशर हमने वो हयात गुजारी है मुफलिसी में दिन गुज़रा मुश्क़िल में सारीरात गुजारी है @"बशर"