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कवितानज़्म
वो तअल्लुक़-राब्ते न रहे वो दोस्ती निस्बत न रही अदावतें रकाबतें दुश्मनी झेलने की हिम्मत न रही वक़्तके फेरमें लोगोंके मुकद्दर ही बदल गए बशर ज़ब्त हाथों की लकीरों में अपनी क़िस्मत न रही डॉ.एन.आर. कस्वाँ "बशर"/१८/१२/२०२३