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हाथों की लकीरों में क़िस्मत न रही - Dr. N. R. Kaswan (Sahitya Arpan)

कवितानज़्म

हाथों की लकीरों में क़िस्मत न रही

  • 85
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वो तअल्लुक़-राब्ते न रहे वो दोस्ती निस्बत न रही
अदावतें रकाबतें दुश्मनी झेलने की हिम्मत न रही
वक़्तके फेरमें लोगोंके मुकद्दर ही बदल गए बशर
ज़ब्त हाथों की लकीरों में अपनी क़िस्मत न रही

डॉ.एन.आर. कस्वाँ "बशर"/१८/१२/२०२३

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