कवितालयबद्ध कविता
👕मां की सलाइयां और ऊन के गोले 👕
🌺वो आ गई रंगहीन शरद यहां🌺
🌺सूरज से इसका नाता बुरा🌺
🌺चंदा बन गया इसका सगा🌺
🌺शीत लहर कैसे रोके, ये धरा🌺
🌷मां मेरी जिंदा है अभी🌷
🌷छू ना पाएं शरद मुझे कभी🌷
🌷दो सलाइयों का मिलना है बाकी 🌷
🌷सहज सहज फिर घेर बनाती 🌷
🌸गीत गुनगुनाती मां बार बार🌸
🌸जब सलाइयों पर चढ़ती ऊन हजारों बार 🌸
🌸कवच बनने को अब है तैयार🌸
🌸मुझपे करें ना अब शरद प्रहार🌸
🌹 जब पड़ा गर्भ मे, मां थी रक्षा 🌹
🌹आई गर्मी ,चला हाथों का पंखा🌹
🌹अब कैसे चुबेगा ,डंक शरद का🌹
🌹जब बुन रही मां ,मेरा कवच तन का 🌹
🌸कवि - रिंकु बुमरा 🌸