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कवितानज़्म
*सराबों से आब चाहता है* हकीक़त से बे-ख़बर बशर मुकम्मल करना ख़्वाब चाहता है मोम के अपने घर आंगन में वह उगाना आफताब चाहता है सहरा के इक प्यासे की हुदूद-ए-शिद्दत-ए-तिश्नगी तो देखिए अपने तसव्वुर ए सफ़र ए हयात में सराबों से आब चाहता है ©️डॉ.एन.आर. कस्वाँ "बशर"