कवितानज़्म
दुनिया जहाँ में यहाँ - वहाँ ले गई
जिंन्दगी तू हमें कहाँ -कहाँ ले गई
मर्जी से हमारी तू कब किधर गई
इसनेकहा लेगई उसने कहा लेगई
हम मुहूर्ते-वक़्तके मुंतज़िर बैठेरहे
आंधियां वक़्तकी चलीं बहा लेगई
बे-सबब बे-दिली से होकर बे-बस
हमभी चलेगए तू जहां जहां लेगई
आलमे-हयात अपना ये रहा बशर
जिन्दगी की जुस्तजू ही जां ले गई
©️ "बशर"