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इंसान - Rekha Indoriya (Sahitya Arpan)

कविताचौपाई

इंसान

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फूलों का रंग बदलना तों यूँ ही बदनाम हैं, हमने तों इंसान को बदलते देखा हैं। ना हवा बदली ना पानी, इंसान की बदली वाणी। गैरो का तो छोडो, खून के रिश्ता भी धोखा देता हैं। कौन अपना कौन परहया यह बुरा वक़्त ही बताता हैं। खुशियाँ म तो सब साथ मनाते, दुख म अकेले सहते नज़र आते हैं।

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