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कवितानज़्म
मेहमानों की तरह रहे अगर साथ में रहे कोई तो इन्सानों की तरह रहे ना जाने हम क्यूं हरसम्त अनजानों की तरह रहे अजनबियों के बीच उम्र गुज़र गई इक छतके तले अपने ही घर में हम अक़्सर मेहमानों की तरह रहे ©️डॉ.एन.आर. कस्वाँ "बशर"/०१/१२/२०२३