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कवितानज़्म
*रक़ीब काम आया* तावीज़-ए-पीर काम आया ना शिफ़ा-ए-तबीब काम आया सुकून-ए-क़ल्ब के वास्ते बशर दीदार-ए-हबीब काम आया क़रीब के अहबाब काम आए ना अपना नसीब काम आया उम्रे-तमाम जिसको गैर समझते रहे वही रक़ीब काम आया ©️डॉ.एन.आर. कस्वाँ "बशर"/२९/११/२०२३